वर्षों पुरानी रेल लाइन की मांग कभी पूरी हो जाए तो हो जाए। वर्तमान सरकार में झालावाड़ से लेकर उज्जैन तक सभी सांसद भाजपा के हैं और केंद्र में सरकार भी भाजपा की है। इससे सुनहरा अवसर आखिर कब आएगा। ।रेल आएगी तो होगा औद्योगिक विकासप्रदेश के नवगठित ५१वें जिले के रूप में अस्तित्व में आए आगर जिले में रेल न होने के कारण एक भी उद्योग स्थापित नहीं है। इस कारण युवा पलायन को मजबूर हैं। यदि उज्जैन-रामगंजमंडी रेल लाइन स्वीकृत हो जाती है तो उज्जैन जिले के घट्टिया, घोंसला सहित आगर जिले के तनोडिय़ा से लेकर सोयत, डोंगरगांव तक के क्षेत्र विकास की राह पर चल पड़ेगा। जिले में शासकीय भूमि की अधिकता है जो किसी भी उद्योग के स्थापित होने का मूल आधार है। सौर व पवन ऊर्जा के लिए अनुकूल है। उद्योगों, कलकारखानों के लिए आवश्यक श्रमिक भी प्रचुर हैं, लेकिन रेल न होने के कारण यहां...
more... कोई उद्योग स्थापित नहीं हो पा रहे हैं। राज्य शासन द्वारा आगर में औद्योगिक इकाइयां विकसित करने के लिए मालवा फू्रट प्रोसेसिंग यूनिट स्वीकृत कर रखी है लेकिन इकाई भी रेल न होने के कारण पिछड़ती दिखाई दे रही है। आगर एवं शाजापुर का नाम संतरे की पैदावार के लिए देश-विदेश में विख्यात है। हालांकि पहले यहा पर नैरोगेज लाइन थी जो अब नहीं है।सर्वे में बताई थी करोड़ो की लागतजब मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री थे उस दौर में उज्जैन-रामगंजमंडी रेल लाइन का सर्वे रेल मंत्रालय द्वारा कराया गया था। उस दौर में उज्जैन के पिंगलेश्वर से राजस्थान के झालावाड़ तक १६० किमी की लंबाई वाले इस मार्ग पर खर्च १२२० करोड़ रुपए बताए गए थे तथा इलेक्ट्रिक परियोजना के लिए १४०५ करोड़ रुपए का आकलन सर्वे के दौरान किया गया याद आता है छुक-छुक गाड़ी का सफरआगर और उज्जैन के बीच चलने वाली रेल के सफर का आनंद ले चुके बुजुर्गों ने आज भी रेल के टिकट संजोए रखे है। कुछ इसी प्रकार का संग्रह बताते हुए प्रेमनारायण शर्मा गुरु ने बताया एक रुपए में उज्जैन तक का सफर हो जाया करता था और करीब तीन से चार घंटे में छुक-छुक गाड़ी से उज्जैन जाया करते थे। आज भी वह सुहाना सफर याद आता है। छावनी स्थित टिकट घर से टिकट लिया करते थे। ट्रेन में २ डिब्बे माल वाहक थे वहीं ९ डिब्बे सवारी के थे। गति इतनी कम हुआ करती थी कि युवाओं की टोली अगले डिब्बे से उतरकर किसी भी खेत से फल या इत्यादि लेकर वापस दौड़कर आखिरी डिब्बे में सवार हो जाते थे। रूट पर दो ट्रेन चला करती थी। एक सुबह ७ बजे आगर से रवाना होती थी जो की दोपहर १२ बजे उज्जैन पहुंचती थी। उज्जैन से जो दूसरी ट्रेन आती थी उसकी क्रॉसिंग उस जमाने के घोंसला जंक्शन पर हुआ करती थी।सामाजिक संस्थाओं ने भी चलाई थी मुहिमरेल लाइन के लिए कई सामाजिक संगठनों ने आगे आते हुए २०१६ में मुहिम चलाई थी जिसमें शहर के युवाओं द्वारा सीधे प्रधानमंत्री व रेल मंत्री को फेसबुक, वाट्सएप एवं ट्वीट के जरिये अपनी मांग रखी गई थी।कहां गए वादेचुनाव के दौरान हमेशा रेल की सौगात दिए जाने का वादा नेताओं द्वारा किया जाता है लेकिन चुनाव होने के बाद ध्यान नही दिया जाता है। गत लोकसभा चुनाव के दौरान कुछ इसी प्रकार के वादे नेताओं द्वारा किए गए थे और क्षेत्रवासियों ने वादे के मुताबिक वोट भी दिए और भाजपा प्रत्याशी को भारी वोटों से विजय दिलाई।