मैं आपकी इन बातों से बिलकुल सहमत हूँ की भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा जो गरीबी रेखा के नीचे है या उससे थोडा सा ऊपर है उसके लिए डीaलालों की आवश्यकता नहीं है. लेकिन श्रीमान आप शायद भूल रहे है की इस तबके के लोग कभी कभी ही बहार जाते हैं और वो छोटी दूरी के लिए . अब अगर इनकी हकीकत भी देखे तो जो गाँव में रहने वाला एक ग्रामीण अगर एक टिकट बुक करवाने के लिए शहर आता है तो पहले तो वह अपने गाँव से शहर तक आने के लिए कम से कम ५०-१०० रुपये खर्च कर लेता है और अपनी पूरे दिन की दिहाड़ी का नुक्सान करता है सो अलग. इसी जगह पर वह भी एक एजेंट को तलाशता है जो उसके गाँव का ही कोई बन्दा होता है जो उससे २५-३० रुपये लेकर उसकी टिकट बना देता है. आज भी भारत के अधिकांश...
more... गांवो में रेल लाइन तो छोडिये सड़क तक नहीं है. आज इ-टिकट उन लोगो के लिए एक सहायक ना की उनका खून चूसने वाला. आज किसी भी आम आदमी के पास अब इतना समय नहीं है की वो काउंटर पर जा कर लाइन में खड़ा रहे सिर्फ १५-२० रुपये बचाने के लिए. हाँ अगर एजेंट अपने ग्राहक से नाजायज वसूली करता है है तो वह बहुत गलत है. आज e-टिकट ने यात्रा बहुत आसान की है तो एजेंटों का इसमें बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि टिकट बनाने से पहले अपने ग्राहक को पूरी जानकारी देना, उसके लिए टिकट की कान्फर्मेसन करना , उसके टिकट को जब चाहे तब कैंसिल करना यह एजेंट की ड्यूटी में शामिल है. आज रात को ग्यारह बजे अगर कोई ग्राहक फ़ोन करता है एजेंट ना सिर्फ उसका फ़ोन रिसीव करता है बल्कि उसकी टिकट भी बना देता है और पार्टी कही भी उसे उसके मेल पर या फैक्स के जरिये भेजना भी एजेंट की ड्यूटी हो जाती है. अगर कोई एक एजेंट गलती करता है तो आप सारे एजेंटों को गाली दें या यह कहे की IRCTC के सारे एजेंटों की आई d बंद कर देनी चाहिए तो यह सही नहीं क्योंकी भारत की बेरोजगारों की एक बड़ी आबादी का एक बड़ा तबका इससे आज अपनी रोजी-रोटी चला रहा है. अगर बंद करवाना है तो उस धांधली को करवाए जो PRS काउंटर या IRCTC साईट पर सुबह 8 बजे होती है.