Ravish Kumar's (NDTV India) blog on Facebook:
रेल बजट के दिनों में लैनलों के लिलपोर्टर ऐसे रेल में घुसते हैं जैसे सीधा चाँद से गड्ढे में गिर गए हों । हम जैसे सामाजिक जीवन में रहते हैं वैसे ही तो रेल में रहते हैं । जिस नालायक रोंदू क्लास को फ्लश चलाने और बेसिन के इस्तमाल की तमीज़ नहीं उसे सफ़ाई को लेकर रोता देख रोना आता है । फ़्लश करने के तरीके लिखने के बाद भी इस्तमाल करना नहीं आता । मग तक को बाँध कर रखना पड़ता है । गंदा कौन करता है रेल को ।कौन कुर्सियाँ और हैंड रेस्ट तोड़ देता है । चार्जर में प्लग ऐसे ठूँसता है जैसे खुंदक निकाल रहा हो । सुरक्षा के नाम...
more... पर क्या मुमकिन है कि हर कोच में दो सिपाही हों । ये रोंदू क्लास दिल्ली मेट्रो में औरतों के साथ किया बर्ताव करता है क्या ये बात समाज में ज़ाहिर नहीं है ।मैं खुद रेल में चलता हूँ । खाना इतना भी घटिया नहीं होता कि हाहाकार मचा दें । ज़रूर कभी कभी या अक्सर किसी ट्रेन में ख़ाना ख़राब होता है मगर कई ट्रेन में अच्छा ख़ाना भी मिलता है । साफ़ सुथरा भी । पहले क्या खाते थे ? बाल्टी में चना घुघनी कचौरी पूरी आराम से खा लेते थे कि नहीं । भारतीय रेल आबादी के भयंकर दबाव से गुज़र रही है । व्यवस्था और संसाधन का भी मसला है । एक बात और । रेलवे सामाजिक दायित्व का भी निर्वाहन करती है । विजय मलाया जैसों ने कौन सा एविएशन सेक्टर को बदल दिया है । किराये को लेकर लूट मची रहती है । रोंदू क्लास चुपचाप सहन करता रहता है.