मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ | रेल में औसत आदमी साल में ज्यादा से चार बार यात्रा करता है और बस में औसतन बीस बार फिर भी रेल के बढ़ते किराए से ही उसे परेशानी होती है ऐसा क्यों जबकि बस के किराये रेल से दोगुने हैं | फिर आराम भी ट्रेन में ही मिलता है | जब चाहो सो जाओ जब चाहो टॉयलेट जाओ | हाँ यह जरूर है कि रेल में सफाई इसलिए कम दिखती है क्योंकि लोग ही उसे गन्दा करते हैं | जरूरत है लोगों को जागरूक करने की | उन्हें यह समझाने की कि सारी जिम्मेदारी सिर्फ रेल की नहीं , हमारी भी है | खिड़की से हाथ बाहर करके कचरे को बाहर भी फेंका जा सकता है | यदि यात्री जाग्रत हों तो सब ठीक हो जाएगा |