आज हर कोई कह रहा है। रेल भाड़ा बढ़ाना सही है। सुविधाये चाहिए न, तो अच्छा है। लेकिन गरीब लोगो के बारे में कोई नहीं सोचता। अमीर लोगो पर तो शयद कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन जो लोग प्राइवेट फर्म, या संविदा पर कार्यरत हैं, वो कैसे जिए इस महंगाई के युग में। जहाँ हर चीज़ महंगी हो जाती है, हर चीज़ बढ़ जाती है। इन लोगो की तनख्वा भी तो बढ़नी चाहिए जब महंगाई बढ़ रही है। तनख्वा नहीं बढ़ाते काम इतना करवाते हैं जितने पैसे भी नहीं मिलते। सिग्नेचर ज़यादा पैसो पर करवाते हैं और पैसे कम मिलते हैं। प्राइवेट जॉब वाले कहेंगे पैसे बढ़ाओ तो इसमें काम करना है तो करो, नहीं तो जॉब के लिए तो लाइन लगी पड़ी है, और संविदा वाले कहेंगे पैसे बढ़ाओ तो हमे तो ज़यादा समय रखना है ही नहीं कभी भी निकाला जा सकता है कहो तो अभी तुम्हारा...
more... कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म कर दे। कैसे जियेगा इंसान। हमारे देश में प्राइवेटाइजेशन नहीं होना चाहिए, प्राइवेट वाले खून बहुत चूसते हैं काम ज़यादा लेते हैं और पैसे कम देते हैं। सारे आर्गेनाइजेशन गवर्नमेंट के होने चाहिए। और संविदा नहीं होनी चाहिए कुछ समय के लिए हो संविदा और बाद में उसी को परमानेंट कर देना चाहिए। इससे बेरोजगारी काफी हद्द तक कम हो जाएगी। इन सब के लिए तो सरकार सोचती नहीं है और बस महंगाई बढ़ा दो। सरकार अगर बेरोजगारी कम या ख़त्म करना चाहती है तो जितने भी गवर्नमेंट एम्प्लाइज हैं चाहे वो सेंट्रल गवर्नमेंट के हो या स्टेट गवर्नमेंट के सभी को यह सुविधा दी जा सकती है की अपना रिटायरमेंट जल्दी लेकर वो अपनी जगह अपने एक बच्चे को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से अपनी नौकरी दे सकता है। और जितने भी लोग संविदा पर कहीं काम कर रहे हैं उनको रेगुलर एम्प्लोयी बनाया जा सकता है। इससे काफी हद तक बेरोजगारी कम की जा सकती है।