जब परमानेंट लोगो को ज़यादा पैसे मिलते हैं और संविदा पर काम करने वालो को कम पैसे मिलते हैं तो फिर दोनों को बराबर की महंगाई का सामना क्यों करना चाहिए। संविदा पर काम करने वालो के लिए महंगाई कम होनी चाहिए क्योंकि पैसे भी तो कम देते हैं। प्राइवेट वाले तो और भी बड़े कुत्ते होते हैं खून डबल चूसते हैं और पैसे इतने कम। न आने का टाइम होता है और न घर जाने का। सॉरी आने का टाइम तो फिक्स होता है घर जाने का कोई टाइम फिक्स नहीं है। उन्हें भी बराबर की महंगाई का सामना करना पड़ता है ऐसा क्यों ?