रेलवे के
अधिकारी नहीं ढूंढ़
पाए
ममता का 'लापतागंज' 1
यह भी खूब रही। ममता बनर्जी ने संसद में एक ऐसे कस्बे तक रेल लाइन बिछाने की घोषणा कर दी, जो नक्शे पर है...
more... ही नहीं। ममता ने ये गलती कैसे की, इस बारे में भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। रेलवे के अफसरों ने भी इस कस्बे को ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता हाथ न लगी। उन्होंने इसके लिए उस विधायक की भी मदद ली, जिसके क्षेत्र में ममता ने इस कस्बे के होने का दावा किया था। वह भी थक-हार कर बैठ गया। अब रेलवे ने लाइन बिछाने की इस योजना को ठंडे बस्ते म डालने का निर्णय लिया है। वाकया कुछ यों हैं। 25 फरवरी, 2011 को तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने लोकसभा में पेश रेलवे बजट में पश्चिम बंगाल में कटवा और करीमगंज के बीच रेल लाइन बिछाने का ऐलान किया। जनसत्ता में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके तुरंत बाद ही पूर्वी रेलवे के अधिकारियों ने योजना पर अमल के लिए करीमगंज कस्बे की तलाश शुरु कर दी। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी रेलवे इस कस्बे को खोज नहीं पाया। उन्होंने कटवा के कांगेसी विधायक रवींद्र नाथ चटर्जी की मदद भी ली। लेकिन वे करीमगंज कस्बे पता नहीं लगा पाए। मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा कि ये कोई भुतही जगह है, किसी को पता नहीं ये कहां है? करीमगंज को ढूंढ़ने की सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद अब रेल मंत्रालय ने
इन कस्बों की बीच रेल लाइन बिछाने के प्रस्ताव को 'ब्लू बुक' से हटाने का निर्णय लिया है। ब्लू बुक में रेलवे की सभी लंबित,
जारी और प्रस्तावित परियोजनाओं
का ब्योरा होता है। 21 जून, 2011 को पूर्वी रेलवे के तत्कालीन मुख्य कार्यकारीअधिकारी(निर्माण)
एके हरित ने रेलवे बोर्ड को भेजी चिट्ठी में कहा था कि तमाम कोशिशों के बाद भी कटवा के आसपास किसी करीमगंज कस्बे को ढूंढा नहीं जा सका। उन्होंने कहा था कि रेलवे को करीमगंज नाम के दो कस्बों का पता चला है उनमें से एक बिहार में गया पास है और दूसरा असम में। रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बजट प्रस्तावों को अंतिम रूप देने में लापरवाही के कारण ही रेलवे को एक लापता जगह की तलाश में पैसा व समय बर्बाद करना पड़ा और शर्मिदंगी उठानी पड़ी।