Some couplets penned by me regarding the current situation of IRI...
पुरु-दुरु में फंस गई है आईआरआई क्या करें,
इन सब को दूर कैसे करें!
कुछ...
more... लोग लगाए हुए हैं घात,
आते हैं बाहर जब निकलती है कोई बात!
अधुना ऐसा लगता जैसे ट्रेन पक्का जाएगी इस डगर – उस डगर,
ऐसा कुछ होता न आगे मगर!
आतिथेयः बनने के जगह,
दिखाया जाता अँगुष्ठः!
सांसदों की माँग पर होते हैं कई चर्चे,
पता ही है कितने माँग रह जाते हैं कच्चे और कितने सच्चे!
एक दूसरे को काटने को दौड़ते हैं कई,
भला ऐसा भी कोई करता है भई!
Disclaimer: This blog is purely written on the basis of feelings inside me. There is no intension to target or bash anyone