@IM UR LOVER: Re# 220208-52
प्यारे दोस्तो, एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत 64 वर्षो का सफर तय कर चुका है। यह हम सभी के लिए गौरव और खुशी का क्षण है। साथ ही हमें एक राष्ट्र के रूप में अपने विचारों को पुनर्जीवित करने, अपनी प्रगति की समीक्षा करने और उन चुनौतियों का सामना करने के लिए नई रणनीतियां बनाने की भी जरूरत है, जो 21वीं सदी के भारत के समक्ष मुंह बाए खड़ी हैं। मेरा मानना है कि ऊर्जा और प्रेरणा से भरे युवा हमारी सबसे बड़ी संपदा हैं।
भारत...
more... के पास ऐसे 60 करोड़ से भी अधिक युवा हैं और देश के समक्ष स्थित चुनौतियों का सामना करने, उपलब्ध संसाधनों का उपयुक्त दोहन करने और वर्ष २क्२क् तक आर्थिक रूप से विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वे हमारी सबसे बड़ी उम्मीद हैं। यहां मैं विशेष रूप से दो युवाओं के बारे में बताना चाहूंगा, जो इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं कि प्रेरणा से भरे युवा किस तरह खुद को और समाज को बदल सकते हैं।
मैं कर सकता हूं : दोस्तो, जब मैं भारत का राष्ट्रपति था, तब 28 अगस्त 2006 को मैं आंध्रप्रदेश के आदिवासी विद्यार्थियों के एक समूह से मिला। मैंने उन सभी से एक ही सवाल किया : ‘तुम क्या बनना चाहते हो?’ कई छात्रों ने इस सवाल का अपनी तरह से जवाब दिया, लेकिन नौवीं कक्षा में पढ़ रहे एक दृष्टिबाधित लड़के ने कहा कि ‘मैं भारत का पहला दृष्टिबाधित राष्ट्रपति बनूंगा।’ मुझे उसकी महत्वाकांक्षा अच्छी लगी, क्योंकि अपने लिए छोटे लक्ष्य तय करना एक अपराध है।
मैंने उसे शुभकामनाएं दी। इसके बाद उस लड़के ने कड़ी मेहनत की और 10वीं की परीक्षा में 90 फीसदी अंक पाए। बारहवीं की परीक्षा में उसने और अच्छा प्रदर्शन करते हुए ९६ फीसदी अंक पाने में कामयाबी हासिल की।
उसका अगला लक्ष्य था एमआईटी कैम्ब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई। उसकी कड़ी मेहनत और लगन के कारण उसे न केवल एमआईटी कैम्ब्रिज में सीट मिली, बल्कि उसकी फीस भी माफ कर दी गई। उसकी प्रतिभा को देखते हुए जीई (जनरल इलेक्ट्रिक) के वालंटियर्स ने उसकी अमेरिका यात्रा के लिए आर्थिक मदद की।
जब जीई ने उसका ग्रेजुएशन पूरा होने पर उसके समक्ष जॉब का प्रस्ताव रखा, तो उसने जवाब दिया कि यदि वह भारत का राष्ट्रपति नहीं बन पाया तो जरूर इस पर विचार करेगा। इस लड़के का आत्मविश्वास अद्भुत है। संकल्प और दृढ़ता एक दृष्टिबाधित लड़के के जीवन में भी व्यापक बदलाव ला सकते हैं।
सपनों से सोच, सोच से हकीकत : 7 जनवरी २क्११ को मैं मीनाक्षी मिशन हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी कैंसर यूनिट का शुभारंभ करने मदुरै गया था। कार्यक्रम के दौरान अचानक मैंने देखा कि एक व्यक्ति मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा है। मुझे उसकी शक्ल जानी-पहचानी लगी।
करीब आने पर मैंने देखा कि वह मेरा पूर्व ड्राइवर था। 1982 से 1992 के दौरान जब मैं हैदराबाद में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब का डायरेक्टर था, तब वह मेरे लिए काम किया करता था। उसका नाम था वी काथिरेसन। उन दस सालों के दौरान मैंने गौर किया था कि जब वह कार में मेरी प्रतीक्षा किया करता था तो वह उस समय का उपयोग कुछ न कुछ पढ़ने में करता था।