एक समय था जब कोयले का इंजन रेल का राजा होता था ।देश की 70 प्रतिशत जनता उसका अहसान मानती थी रेल यात्रा के समय घर वाले बच्चों को खिड़की से बाहर झाँकने से मना करते थे कि कहीं उड़ता हुआ बारीक कोयला आँख में न गिरे । फिर भी उत्सुक होकर बाहर झांकते और कोयला आँख में गिरने पर आँख भी मलनी पड़ती थी । वह भी क्या दिन थे । जब स्टेशन की पूरी 2 रुपये में पेट भर देती थी । कहीं भी किसी भी नल से पानी पियो कोई नुक्सान नहीं। 2 दिन का सफ़र करने के बाद भी थकान नहीं। और आज लोग कहते हैं 8 घंटे की यात्रा में थक गए । क्या सुनहरे दिन थे । आज भी याद आते हैं वर्ष 1965 ।