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धन्य हमें जो भारत की पुण्य भूमि में जन्मे हैं, ऐसा कहते हम अपना भाग्य सराहते थे वहीं अब हमें शर्म आती है जब विदेशी हमसे घिनाते हुए हमें नेटिव कहते हैं। सुशिक्षित हो यही जी चाहता है कि कैसे हिंदू समाज से निकल भागैं और विलाइत का रास्ता पकड़ैं। डासन के घर के बने बूट के मुकाबिले दिल्ली की बनी जूतियाँ पाँव में भद्दी मालूम पड़ती हैं। लुधियाना और मुरादाबाद के बने मोटे कपड़े हमारे नवयुवकों के कोमल अंगों में गड़ते हैं। अस्तु गाई गीत को अब कहाँ तक गावैं इसमें संदेह नहीं भारत का भूत काल बड़ा चमकीला था पर यह सब तो वही बात हुई कि हमारे बाप ने घी खाया था न विश्वास हो तो हमारा...
more... हाथ सूँघ लो। अवनति ने इस धुँधले जमाने में पेड़-पेड़ टटोलते हुए आप के इस बढ़ावा देने से अब काम चलेगा? 'बीती ताहि बिसार दे आगे सुधि ले' आगे के लिए अब क्या होनहार है सो ईश्वर जाने पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि सदा सब के दिन एक से नहीं रहे जो उठा गिरेगा और जो गिरा है वह कभी न कभी उठैगा भी। यह किसी तरह असंभव नहीं है कि भारत अपना पहिले का महत्व और गौरव अब न प्राप्त कर सके।