नमस्कार
प्रस्तुत है दतिया यात्रा का दूसरा भाग।
अब तक आपने पढ़ा की हम लोग किस तरह सुबह जागे, कैसे सभी लोग मिले और किस तरह से आगरा पहुचे। अब बारी है अपना यात्रा वृतांत बताने की।
जैसे ही हम प्लेटफार्म 1 पर पहुचे तो वहां पाया कि हमारी ट्रेन को आज ग़ाज़ियाबाद वैप 7 मिला है। यहाँ हमने एवं अथर्व ने शया3 डब्बे...
more... में प्रवेश किया बाकी सभी ने शया 8 में प्रवेश किया। यहाँ पहुचते ही हिष उड़द गए क्योकि एक तो हम दोनों की सीट थोड़ी दूर थी ऊपर से इतनाI ज़्यादा भीड़, प्रयास किया खिड़की वाली सीट हथियाने का लेकिन उसी समय सोचा की मोहित जी को ही पूछ लेते है उनके डब्बे में क्या हाल है। उन्होंने बताया कि काफी जगह है यही आ जाओ। इसी बीच गाडी चल पड़ी। इधर हम लोग डब्बे बदलते हुए तेजी से शया 8 की तरफ बड़ रहे थे उधर गाडी आगरा छावनी स्टेशन से निकलते हुए पटरियां बदल रही थी। जब हम शया 8 के दरवाजे पर पहुचे तो लगा की गाडी अब भी गति नहीं पकड़ रही तो अथर्व ने बताया कि यहाँ गति प्रतिबंधित छेत्र है। उसके बाद हम मोहित जी के पास पहुच गए। यहाँ आके शुरू हुआ खेल इधर पंजाब मेल ने गति पकड़ी तो अथर्व जी को खिड़की वाली सीट भी मिल गयी और हम सबको गपशप करने का मौका। इसी बीच गाडी अचानक भांडई पर ठहर गयी तो यहाँ से शुरू हुआ स्टेशन गिनाने का सिलसिला। यहाँ सबसे पहले तो हम लोगो ने झाँसी तक के स्टेशन गिने उसके पश्चात् दिल्ली कानपूर रूट के स्टेशन गिने। इसी बीच पता लगा की संजय जी की सीट 47 नंबर हे शया 7 डब्बे में। सोचा की उसी सीट को खाली कराया जाए क्योंकि उसपर 2 खिड़की होती है। इसी बीच गाडी उछलते कूदते धौलपुर आ खड़ी हुई, रास्ते में मनिया पर उस मालगाड़ी को ओवरटेक भी किया जो आगरा से हमसे ठीक पहले निकली थी। यहाँ 47 क्रमांक सीट पर एक जनाब बैठे हुए थे अपना भारी भरकम सामान जमाये हुए। हमने हटने को कहा तो कहने लगे की ये उनकी ही सीट है हमने टिकेट मांगी तो पहले तो ना नुकुर करने लगे फिर अपना RAC वाला टिकेट दिखाने लगे उसके बाद पता लगा की उनका बर्थ क्रमांक 48 है तो थोड़ी सी जगह देने लगे साथ ही भीख जैसी माँगने लगे की ग्वालियर तक ही जाना है क्यों मुझे उठा रहे हो। तो मोहित जी के आग्रह पर हमने कदम पीछे खींच लिए और दरवाजे पर आकर चम्बल के पुल का वीडियो बनाने लगे। उसके बाद वापस हम पुरानी सीट पर ही आकर बैठ गए। इसी बीच सिकरौदा पर हमने छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को ओवरटेक किया। अब बारी थी कीर्ति भाई के गृह स्टेशन मोरेना की।
गाडी तेजी से धीमे हुई और अचानक से मोरेना पर आके ठहर गयी । में और अथर्व गाडी के बाहर आये। भीड़ अधिक होने की वजह से हमें सिग्नल नहीं दिख पा रहा था फिर भी उम्मीद थी की यही संपर्क क्रांति ओवरटेक करेगी। मेरा मन था कि पैदल पार पुल के ऊपर से वीडियो लू लेकिन दर भी था कि कही ऊपर चढ़े और गाडी चाल्दी तो वैप 7 बहुत जल्दी ही गति पकड़ता है। इसी बीच पीछे से एज़ गति से आती हुई किसी गाडी का हॉर्न सुनाई दिया। में पैदल पर पुल की तरफ लपका तो पाया कि में उससे बहुत दूर हु और जब तक में स्थान पर पहुँचूँगा, गाडी निकल जाएगी, लेकिन फिरभी फुर्ती से भागते हुए ही मेने अपने मोबाइल का कैमरा ऑन किया और जल्दी जल्दी पुल पर चढ़ा किन्तु नियत जगह पर न पहुच पाया फिरभी वीडियो सफलता पूर्वक लेली। उसके बाद वापस आकर अथर्व को बताया तो उसने कहा कि मुझे लगा था कि आपने मिस कर दिया ये धांसू ओवरटेक। उसके पस्चात गाडी ने पुनः हॉर्न दिया लेकिन रक लंबा वाला तो याद आया की सचखंड सामने लूप लाइन पर खड़ी थी। इसी बीच पूर्व तट रेल की एक गाडी धड़धड़ाते हुए आयी और सचखंड को मजा चखाते हुए चली गयी। जी हां ये हीराकुंड थी। उसके पस्चात पंजाब मेल ने हॉर्न बजाया और चल पड़ी ग्वालियर की तरफ। उसके बाद पंजाब मेल कही भी धीमी नहीं हुई और ग्वालियर तक आते आते 8 मिनट का विलम्ब कम कर दिया। यहाँ उम्मीदों के विपरीत हर्ष भाई हम लोगो के साथ न आ सके। हमारा सहयात्री जिसने हमें सीट नहीं दी थी मेरी तरफ कातर नजरो से देख रहा था क्योकि वह अकेला था और सामान बहुत ज्यादा। उससे पहले वो कुछ बोल पाता मेने खुद ही उसके जले पर नमक छिड़क दिया। जल्दी उतारलो अपना सामान नै तो गाडी निकल जाएगी उसके बाद भी उसने ड़ो हलके सामान सीट पर छोड़ दिए और मुझको बोला की खिड़की से पकड़ा दू। अपने सभी सामान को उतारते उतारते वो पसीने से लथपथ हो गया, पर अगर उसने मेरी पहले मदद की होती तो में भी यहाँ उसकी मदद करता, 3 मिनट के ठहराव के बाद गाडी एक बार फिरसे चल पड़ी। और उसने भागते हुए किसी तरह से अपना खिड़की वाला सामान उठाया। अब बारी थी ग्वालियर के बाद के एक के बाद एक घुमावों की और हमारे पास 2 खिड़कियों वाली निचली सीट भी थी। इधर गाफी उछालते कूदते पहाड़ो को चीरते हुए आगे बढ़ रही थी तो इधर हम दोनों सिर्फ दृश्यों को आँखों व कैमरे में कैद कर रहे थे। इसी बीच गाडी शांत रूप धारड करते हुए डबरा आकार रुकी।लेकिन यहाँ न तो कोई उतरा न ही कोई चढ़ा। उसके बाद समय आया सोनागिर मोड़ का। यहाँ पंजाब मेल ने जो भगाया, मजा आ गया उसके बाद हम दोनों वापस मोहितजी के पास पहुचे और उन्हें बताया कि हम दतिया पहुच गए है। कुछ ही समय में पंजाब मेल दतिया आकर खड़ी हो गई। हम सभी लोग ट्रैन से उतरे । समय देखा तो बारह बजकर दस मिनट हो रहे थे। वहां से पंजाब मेल के खुलने का वीडियो लिया, एक दो फोटो भी लिए उसके बाद चल पड़े पीताम्बरा माता के दर्शन करने एक जयकारा लगाते हुए। मोहित जी ने बताया कि पल पर चढ़ने या पटरी से उतरने से अच्छा है कि तीर्थ स्पेशल के कोच में से बाहर आ जाए हम लोग। और उनका यह आईडिया सभी को पसंद आया। सब लोग बाहर आ गए एक ऑटो किया और धक्के खाते हुए शक्तिपीठ पहुचे।
अब हमने किस तरह से दर्शन किये, क्या क्या खाया? वापसी कैसे की? सहयात्री कैसे थे वापसी में वगेरह वगेरह जानने के लिए थोड़ा और समय दे।