7.40 की लास्ट लोकल और वह प्रेम कहानी..
ट्रेन नंबर 52240 मतलब लंबी दूरी की 7.40 की लास्ट लोकल ट्रेन। यही ट्रेन तिकुनिया और पलिया तक जाती थी। इस ट्रेन से उन सबकी यादें जुड़ी हैं जो अपनी ड्यूटी पूरी कर इसी ट्रेन से घर भागते थे। इस ट्रेन में पलिया के गांवों के थारू भी होते थे, जो दवा लेकर लखनऊ से वापसी कर रहे होते थे। इस ट्रेन ने कइयों के सपने पूरे किए, कई प्रेम कहानियां लिखीं। कितने लोगों को ताश की बाजी जितवाई, कितनों को शिकस्त दिलाई। अंतिम बार चली इस ट्रेन से जुड़े हजारों किस्से शुक्रवार को उस समय आम हो गए, जब आखिरी बार इस ट्रेन की सीटी गूंजी।
शाम...
more... 07.40 बजे की यह लास्ट लोकल अक्सर लेट हो जाती थी। ज्यादातर डिब्बों के बल्ब गायब, खिड़कियों के शीशे टूटे होते थे। इस ट्रेन ने कई बार बकरियों और मुर्गियों को भी ढोया। इसी ट्रेन में एक प्रेमकथा भी लिखी गई, जिसके रोजाना के मुसाफिर गवाह थे। लखीमपुर की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले अरुण को इसी ट्रेन ने हमसफर दिया। अरुण गोला से रोज ट्रेन से लखीमपुर आते थे और वह लड़की भी। दोनों आते वक्त अक्सर साथ होते थे लेकिन जाते वक्त राहें जुदा हो जाती थीं पर लास्ट लोकल और उस बरसात की रात ने उस अधूरी दास्तान को विस्तार दे दिया। वर्ष 2013 का साल और अगस्त की बरसात की रात। दिन भर इतनी बारिश हुई कि रास्ते के पेड़ गिर गए। बसें चलीं भी तो लालपुर से वापस आ गईं। इसी कश्मकश और मुश्किल में वह लड़की भी फंसी थी, जो शाम चार बजे से घर जाने का साधन तलाश नहीं कर सकी। पटरियों पर पानी था तो कई ट्रेनें कैंसिल चल रही थीं। उस शाम 07.40 बजे की ट्रेन रात साढ़े आठ बजे जरूर आ गई। उस ट्रेन में उस लड़की का कोई मिलने वाला नहीं था। बस अरुण था, जिसे वह चेहरे से पहचान रही थी। रात को अंधेरे डिब्बे में उसको अरुण का सहारा था पर दोनों का मालूम नहीं था कि यह सफर यादगार होने वाला है। ट्रेन लखीमपुर से देवकली आई। उसके बाद पटरियों पर पानी बढ़ गया। गार्ड ने ट्रेन रोक दी। रात के 11 से साढ़े 12 बज गए।
ट्रेन बमुश्किल फरधान से आगे पहुंची। आगे पटरी पर पेड़ गिर गए। भूख के मारे मुसाफिर बेहाल हो गए। इस ट्रेन को गोला पहुंचने में ही सुबह के साढ़े तीन बज गए। उस वक्त सहरी की नमाज होने को हो गई थी। वह लड़की पूरी रात गायब रहने के बाद घर पहुंची। अब ट्रेन में दोनों एक साथ सफर करने लगे। समय के साथ दोनों एक दूसरे के नजदीक आते गए। आखिरकार दोनों की प्रेमकहानी परवान चढ़ी और अभी वे शादीशुदा जीवन जी रहे हैं।शुक्रवार को जब यह ट्रेन आखिरी बार चली तो अरुण जैसे तमाम लोग भावुक हो गए। इस ट्रेन की ऐसी मेहरबानी के किस्से किसी रिकार्ड में नहीं है, बस लोगों के दिलों के पन्नों पर दर्ज हैं।