Jharkhand News: जानकारों के मुताबिक, 17-18 जनवरी 1941 की रात के समय कार से नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे थे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचाकर गोमो हटियाटाड़ के घने जंगल में नेताजी छिपे रहे। नेताजी का साल 1930 से 1941 के बीच कई बार धनबाद आगमन हुआ था।
जनवरी 1941 की रात धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे थे नेताजी
जानकारों के मुताबिक, 17-18 जनवरी 1941 की रात के समय कार से नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस...
more... के साथ धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे थे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचाकर गोमो हटियाटाड़ के घने जंगल में नेताजी छिपे रहे। यहां जंगल में ही स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की थी। बैठक के बाद वकील चिरंजीवी बाबू और अलीजान ने गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में नेताजी को ले गए। यहां उनको एक घर में छिपा दिया था।
लालू प्रसाद ने साल 2009 में स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी को दी थी श्रद्धांजलि
नेताजी रात भर गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में ही रहे। 18 जनवरी 1941 की रात दोनों साथियों ने इसी गोमो स्टेशन से उनको कालका मेल से दिल्ली रवाना किया था। इसलिए गोमो का नाम नेताजी सुभाष चंद बोस जंक्शन रखा गया। इसके बाद से अब प्रत्येक वर्ष प्रत्येक वर्ष 17-18 जनवरी को मध्यरात्रि निष्क्रमण दिवस स्टेशन परिसर में मनाया जाता है। धनबाद से नेताजी का गहरा नाता रहा है।
1930 से 1941 के बीच कई बार सुभाष चंद्र बोस का हुआ था धनबाद आगमन
नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच कई बार धनबाद आगमन हुआ था। उन्होंने धनबाद में 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की थी। नेताजी स्वयं इसके अध्यक्ष थे। यहीं से देश को आजाद कराने को आजाद हिंद फौज का सपना पूरा करने की दिशा में सुभाष चंद्र बोस ने मजदूरों को एकजुट कर कदम बढ़ाए थे।
हावड़ा-कालका मेल का नाम बदलकर किया गया 'नेताजी एक्सप्रेस'
इधर, रेलवे की ओर से ऐतिहासिक हावड़ा-कालका मेल का नाम बदलकर 'नेताजी एक्सप्रेस' किया गया है। हावड़ा-कालका मेल भारतीय रेलवे नेटवर्क की उन सबसे पुरानी ट्रेनों में एक है, जो अभी भी पटरियों पर दौड़ रही है। यह ट्रेन पहली बार 1866 में चली थी यानी ये रेलगाड़ी 150 साल से देश की सेवा कर रही है।