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दिल्ली एनसीआर में भूकंप क्यों आते हैं ?
दिल्ली एनसीआर में भूकंप के सभी झटके तनाव ऊर्जा के जारी होने के कारण आते हैं, जो अब भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में बढ़ने और फॉल्ट या कमजोर जोनों के जरिये यूरेशियन प्लेट के साथ इसके संघर्ष के परिणामस्वरूप संचित हो गए हैं। दिल्ली एनसीआर में कई सारे कमजोर जोन और फॉल्ट हैं: दिल्ली-हरिद्वार रिज, महेंद्रगढ़-देहरादून उपसतही फॉल्ट, मुरादाबाद फॉल्ट, सोहना फॉल्ट, ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट, दिल्ली-सरगोधा रिज, यमुना नदी लीनियामेंट आदि। हमें अवश्य समझना चाहिए कि हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र, जहां भारतीय प्लेट...
more... यूरेशियन प्लेट के साथ टकराते हैं और हिमालयी वेज के नीचे धकेले जाते हैं, एक दूसरे के विरुद्ध प्लेटों की अपेक्षाकृत आवाजाही के कारण प्लेट बाउंड्री पर तनाव ऊर्जा संग्रहित हो जाती है जिससे क्रस्टल छोटा हो जाता है और चट्टानों का विरुपण होता है। ये ऊर्जा भूकंपों के रूप में कमजोर जोनों एवं फाल्टों के जरिये जारी होती है जो सूक्ष्म (8.0)भूकंप के रूप में आ सकते हैं जो निर्मुक्त ऊर्जा की मात्रा के अनुरूप परिभाषित होती है। छोटी तीव्रता के भूकंप अक्सर आते रहते हैं लेकिन अधिक तीव्रता के भूकंप दुर्लभ से बेहद दुर्लभ होता है। बड़े भूकंपों की वजह से ही संरचनाओं एवं संपत्तियोंए दोनों को भयानक नुकसान होता है।
हिमालय से लेकर दिल्ली-एनसीआर तक भूकंपों का प्रभाव:
हिमालयर वृत्त खंड में 1905 में कांगरा का आइसोसेसमल (7.8), 1934 में बिहार-नेपाल (8.0), 1950 में असम (8.6), 2005 में मुजफ्फराबाद (6.7) और 2015 में नेपाल (7.8) के भूकंप उत्तर में मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) तथा दक्षिण में हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (एचएफटी) से घिरे हुए हैं। ये भूकंप एक द्विध्रुवीय सतह पर खिसकने का परिणाम हैं जोकि थ्रस्टिंग भारतीय प्लेट के नीचे के संपर्क और हिमालयी वेज पर निर्भर है जो एमसीटी के नीचे 16-27 किमी गहराई से दक्षिण दिशा में फैली हुई है जोकि एफएचटी के रूप में एमसीटी से 50-100 किमी की दूरी पर है।
बड़े भूकंपों के कारण टूटे हुए क्षेत्र हिमालयी आर्क के साथ साथ अंतराल प्रदर्शित करते हैं जिन्होंने लंबे समय से बड़े भूकंपों का अनुभव नहीं किया है और जिनकी पहचान बड़े भूकंपों के लिए भविष्य के संभावित जोनों के रूप में की जाती है। हिमालय में तीन प्रमुख भूकंपीय अंतरालों की पहचान की गई है:
1950 में असम भूकंप एवं 1934 में बिहार-नेपाल भूकंप के बीच में असम अंतराल, 1905 में कांगरा भूकंप और 1975 में किन्नूर भूकंप के बीच में कश्मीर अंतराल तथा 1905 में कांगरा भूकंप और 1934 में बिहार-नेपाल भूकंप के बीच में 700 किमी लंबा कंद्रीय अंतराल। हिमालय का समस्त उत्तर पश्चिम-उत्तर पूर्व क्षेत्र सर्वोच्च भूकंपीय संभावित जोन ट और प्ट के तहत आता है जहां बड़ा से लेकर भयानक भूकंप आ सकता है।
पड़ोस के फॉल्ट एवं रिज:
दिल्ली-एनसीआर के उत्तर में गंगा के जलोढ़क मैदानी क्षेत्र में बड़ी तलछट्टीय मुटापापन, कई सारे फॉल्ट, रिज, हिमालयी आर्क में रेखीय अनुप्रस्थ हैं। फिर, दिल्ली-एनसीआर हिमालयी आर्क से 200 किमी की दूरी पर है। इसलिए, हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप दिल्ली-एनसीआर के लिए भी खतरा बन सकता है। केंद्रीय भूकंपीय अंतराल और दिल्ली-एनसीआर के उत्तर में स्थित गढ़वाल हिमालय में 1991 में उत्तरकाशी भूकंप (6.8), 1999 में चमोली भूकंप (6.6) एवं 2017 में रुद्रप्रयाग भूकंप (5.7) आ चुका है और यहां एक बड़ा भूकंप आने की आशंका है। ऐसा परिदृश्य उत्तर भारत और दिल्ली-एनसीआर पर एक गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
सावधानियां:
दिल्ली-एनसीआर में एवं आसपास भू वैज्ञानिक अध्ययनों का पूरी तरह उपयोग करते हुए उपसतही संरचनाओं, ज्यामिति तथा फाल्टों एवं रिजों के विन्यास की जांच की जानी है। चूंकि नरम मृदाएं संरचना के बुनियादों को सहारा नहीं दे पातीं, भूकंप प्रवण क्षेत्रों में बेडरौक या सख्त मृदा की सहारा वाली संरचनाओं में कम नुकसान होता है। इस प्रकार, नरम मृदाओं की मुटाई के बारे में जानने के लिए मृदा द्रवीकरण अध्ययन किए जाने की भी आवश्यकता है। सक्रिय फाल्टों को निरुपित किया जाना है और जीवनरेखा संरचनाओं या अन्य अवसंरचनाओं को नजदीक के सक्रिय फाल्टों से बचा कर रखे जाने और उन्हें भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुरूप निर्माण किए जाने की आवश्यकता है। महत्वपूर्ण संरचना के लिए आईएमडी द्वारा दिल्ली-एनसीआर के लिए हाल के सूक्ष्म जोनोशन अध्ययन के परिणाम पर विचार किए जाने कर आवश्यकता है।
आम लोगों को संदेश:
भूकंपों का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता लेकिन Vएवं IV के सर्वोच्च संभावित जोनों में 6 एवं अधिक की तीव्रता के बड़े से बहुत बड़े भूकंपों की एक संभाव्यता है जिसके तहत समस्त हिमालयी और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र आता है। जान माल के नुकसान को न्यूनतम बनाने का एकमात्र समाधान भूकंप के खिलाफ प्रभावी तैयारी है। जापान जैसे देशों ने इसे साबित कर दिया है जहां भूकंप एक सामान्य घटना है, फिर नुकसान बहुत ही कम होता है। वहां वार्षिक मॉक-ड्रिल एक नियमित फीचर है। इसकी सफलता की कुंजी लोगों की भागीदारी, सहयोग और जागरुकता है।
कुछ सावधानियां एवं तैयारियां इस प्रकार हैं
क. भूकंप से पहले
1. भूकंप मॉक-ड्रिल/भवनों/घरों का निर्माण
वार्षिक रूप से भूकंप का मॉक-ड्रिल करें
नए भवनों में भूकंप-अनुकूल निर्माण समावेशित करें तथा पुरानी संरचनाओं में पुनःसंयोजन करें
2. एक व्यक्ति विशेष के रूप में तैयारियां (एक परिवार या सोसाइटी में)
एक साथ मिल कर बैठें एवं पड़ोसियों, सोसाइटी/कोलोनी, नजदीकी संबंधियों एवं मित्रों, आपातकालीन स्थिति के लिए मोबाइल नंबरों की रूपरेखा प्रस्तुत करें
एक बैकअप सप्लाई किट तैयार करें जिसमें खाना ( बिस्कुट के पैकेट आदि), पानी, दवाएं एवं प्राथमिक चिकित्सासप्लाइज, फ्लैश लाइट, अनिवार्य कपड़े तथा व्यक्तिगत प्रसाधन सामग्री शामिल हों।
फर्स्ट एड किट को नियमित रूप से अपडेट करें
कम से कम दो पारिवारिक बैठक स्थलों का चयन करें जिनकी पहचान करना, खोलना आसान हो तथा सुगम्य स्थान हो जहां आसानी से पहुंचा जा सकता है
आश्रय, किचन तथा फस्र्ट एड के लिए एकत्र होने के लिए सोसाइटी/कोलोनी/स्ट्रीट में एक समान स्थान की पहचान करें